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    Home»विशेष»झारखंड दौरे में पीएम ने आदिवासियों के दिलों में जगह बनायी
    विशेष

    झारखंड दौरे में पीएम ने आदिवासियों के दिलों में जगह बनायी

    suraj kumarBy suraj kumarNovember 17, 2023No Comments8 Mins Read
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    -रांची की सड़कों, उलिहातू और खूंटी की सभा में उमड़ा जनसैलाब काफी कुछ कहता है
    -भगवान बिरसा मुंडा के गांव की मिट्टी करायेगी 2024 का राजतिलक!

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उलिहातू दौरा संपन्न हो गया है। जनजातीय गौरव दिवस के दिन आदिवासियों के बीच भगवान का दर्जा रखनेवाले बिरसा मुंडा को उनकी जयंती पर नमन कर उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि आदिवासी उनके लिए केवल राजनीति के विषय नहीं हैं, वे उन्हें केलव वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करना नहीं चाहते, बल्कि उनके संकल्प हैं। पांच राज्यों में एन चुनाव के बीच पीएम मोदी का झारखंड दौरा यह बात साफ करता है कि भाजपा बेहद समझदारी से अपनी रणनीति तैयार करती है। ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का झारखंड दौरा भी एक ठोस रणनीति के तहत ही हुआ। आदिवासी समाज के लिए 24 हजार करोड़ रुपये की योजनाओं की घोषणा कर और आदिवासियों से अपना जुड़ाव प्रदर्शित कर पीएम मोदी देश भर के आदिवासी समाज को यह संदेश देने में कामयाब रहे कि वे दिल से आदिवासियों के साथ हैं। झारखंड की राजधानी रांची से करीब 40 किलोमीटर दूर खूंटी जिले के छोटे से गांव उलिताहू की मिट्टी को जब उन्होंने माथे से लगाया, तब एक बात साफ होने लगी कि यह मिट्टी ही 2024 में उनके राजतिलक का रास्ता तय करेगी। यानी, पीएम मोदी के इस एक दौरे ने न केवल आदिवासियों के दिलों में अपनी छवि बनायी है, सीटों के चुनावी समीकरणों पर असर डाला है, बल्कि अगले सप्ताह छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भी एक बड़ा संदेश दिया है। पीएम नरेंद्र मोदी भले ही झारखंड में बिरसा मुंडा की जयंती पर पहुंचे हों और वहां सभा कर घोषणाएं की हैं, लेकिन इसका सियासी असर बेहद जोरदार हुआ है। पीएम मोदी के रांची में रोड शो के दौरान आम लोगों में जो उत्साह दिखा, उलिहातू में जिस तरह से आम लोगों का सैलाब उमड़ा, उससे तो यही लगता है कि भाजपा ने झारखंड में अपनी खोयी जमीन को बहुत हद तक पाटने में कामयाबी हासिल की है। क्या हुआ है पीएम मोदी के झारखंड दौरे का सियासी असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐतिहासिक झारखंड दौरा संपन्न हो गया। धरती आबा बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू पहुंच कर उन्होंने ऐसा रिकॉर्ड बना दिया है, जिसे तोड़ना नामुमकिन है। वह उलिहातू गांव पहुंचनेवाले पहले प्रधानमंत्री बन गये हैं और इसके साथ ही उन्होंने 17 घंटे के इस झारखंड दौरे से वह सब कुछ हासिल कर लिया है, जिसकी भाजपा को सख्त जरूरत थी। यह जरूरत थी आदिवासियों के दिलों में अपनी खोई जमीन हासिल करने की। यह पहला अवसर था, जब उलिहातू के लोगों ने, बिरसा मुंडा के वंशजों ने अपने करीब इतने बड़े नेता को पाया। इससे पहले जब भी कोई बड़ा कार्यक्रम वहां होता था, ग्रामीण नेता की एक झलक पाने के लिए भी तरसते थे। सुरक्षा व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद होती थी कि वहां परिंदे भी पर नहीं मार सकते थे, लोगों का पास आना तो दुर्लभ था। अगर यह कहा जाये कि पीएम मोदी ने भगवान बिरसा मुंडा के गांव की मिट्टी को माथे से लगा कर 2024 में अपने राजतिलक का रास्ता भी साफ कर लिया है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रांची में रात्रि विश्राम करने के बाद जनजातीय गौरव दिवस के दिन झारखंड के खूंटी जिले में स्थित उलिहातू पहुंचे, जहां आदिवासी समाज में भगवान का दर्जा रखनेवाले बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। पीएम मोदी ने खूंटी से आदिवासी कल्याण के लिए 24 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का एलान किया, साथ ही जनजातीय गौरव दिवस पर विकसित भारत संकल्प यात्रा की भी शुरूआत की। दो महीने तक चलनेवाली इस यात्रा के जरिये केंद्र सरकार की योजना अपनी उपलब्धियों को जनता तक ले जाने की है।
    स्वाभाविक रूप से पांच राज्यों में चुनाव के बीच पीएम मोदी के झारखंड दौरे ने नयी चर्चा को जन्म दे दिया है। चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि दो महत्वपूर्ण राज्यों मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रचार थमने को है और चुनाव प्रचार के अंतिम दिन पीएम मोदी इन राज्यों से कहीं दूर झारखंड क्यों आये? भाजपा की पहचान प्लानिंग के साथ चलनेवाली पार्टी के रूप में भी है। ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि इस दौरे के पीछे पीएम मोदी और भाजपा का प्लान क्या था?

    झारखंड में मोदी, चुनावी राज्यों को संदेश
    पीएम मोदी भले ही झारखंड में थे, जहां अभी कोई चुनाव नहीं है, लेकिन भाजपा की रणनीति एक तीर से कई निशाने साधने की है। पीएम मोदी बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर उनकी जन्मभूमि खूंटी जिले के उलिहातू पहुंचे थे। बिरसा मुंडा की जयंती के साथ ही यह मौका झारखंड के स्थापना दिवस का भी था। इसलिए उनके इस दौरे को लोकसभा चुनाव से पहले झारखंड को साधने की कवायद के साथ ही देशभर के आदिवासी मतदाताओं के लिए भी एक संदेश की तरह देखा जा रहा है।
    दरअसल, भाजपा के नेता चुनावी राज्यों में मोदी सरकार के समय बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस मनाने की परंपरा को अपनी उपलब्धि के रूप में आदिवासी मतदाताओं के बीच ले जा रहे हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े नेताओं ने पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भी चुनाव में विरोध का जिक्र करते हुए विपक्ष को खूब घेरा। अब बिरसा मुंडा के सहारे पार्टी की रणनीति आदिवासी समाज से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करने की है।

    चुनावी राज्यों में क्या है आदिवासी वोटों का गणित
    भाजपा की नजर भगवान बिरसा मुंडा के सहारे आदिवासी वोटों का गणित साधने पर है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता का ताज तय करने में आदिवासी मतदाता बड़ी भूमिका निभाते हैं। आबादी के लिहाज से मध्यप्रदेश में 31, छत्तीसगढ़ में 34, राजस्थान में 17 और तेलंगाना में नौ फीसदी आदिवासी हैं। साल 2018 के चुनाव में भाजपा ने तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता गंवायी, तो इसके लिए भी आदिवासी वोट छिटकने को बड़ी वजह बताया गया। दरअसल, छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, जो कुल सदस्य संख्या की एक तिहाई पहुंचती हैं। इन 29 में से भाजपा महज चार सीटें ही जीत पायी थी। मध्यप्रदेश की 230 में से 47 और राजस्थान की 25 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। कांग्रेस को 2018 के चुनाव में मध्यप्रदेश की 47 में से 30 और राजस्थान की 25 में से 16 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा की कोशिश अब छिटके आदिवासी मतदाताओं को फिर से अपने साथ लाने की है।
    हिंदी पट्टी के तीनों ही राज्यों में सत्ता तक पहुंचाने में आदिवासी वोटर का, आदिवासी सीटों का रोल सीढ़ी जैसा है। इसलिए पीएम मोदी का पहले मानगढ़ धाम और अब बिरसा मुंडा की जन्मभूमि पर जाना भाजपा का स्मार्ट मूव है। आदिवासी इलाकों तक तकनीक की पहुंच बाकी इलाकों की तरह उतनी नहीं होने के बावजूद इतना तय है कि पीएम मोदी के झारखंड दौरे का मैसेज राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तक जायेगा।
    एक बड़ा सवाल यह भी है कि आदिवासियों को साधने के लिए पीएम मोदी ने झारखंड को ही क्यों चुना, तो इसका जवाब यह है कि झारखंड एक ऐसा प्रदेश है, जहां से देश भर के आदिवासियों को मैसेज आसानी से दिया जा सकता है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि देश भर के आदिवासी झारखंड को अपना अगुआ मानते हैं। झारखंड का रुख ही देश के आदिवासियों का रुख तय करता है। जनजाति गौरव दिवस के दिन झारखंड आकर पीएम मोदी ने यही संदेश देने की कोशिश की है कि वह आदिवासियों के सच्चे हितैषी हैं। इसका पूरे देश में एक सकारात्मक संदेश गया है। दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी दर्शाने की कोशिश की कि आदिवासी नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति उनके मन में कटुता नहीं है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तरह इस दौरे से अपनी दूरी नहीं बढ़ायी। 14 नवंबर की रात, जब मोदी बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पहुंचे, तब से लेकर 15 नवंबर को उनके दिल्ली लौटने तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हर अवसर पर प्रधानमंत्री का स्वागत सम्मान किया। यहां तक कि उलिहातू में भी उन्होंने प्रधानमंत्री के दौरे की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने आशा व्यक्त की कि प्रधानमंत्री के दौरे से झारखंड के आदिवासियों को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा। उन्होंने जल, जंगल जमीन और सरना धर्म कोड की बात कर प्रधानमंत्री को आदिवासियों के बारे में उनके कर्तव्य का बोध कराया। मुख्यमंत्री ने यहां तक कहा कि अगर आदिवासियों की आर्थिक स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया, तो इनकी संख्या दिनोंदिन कम हो जायेगी, यह बहुत बड़ा संदेश था प्रधानमंत्री के लिए। मुख्यमंत्री ने जब यह कहा कि उन्हें आदिवासी होने पर गर्व है, तो प्रधानमंत्री बहुत ही गंभीरता से उनकी बातों को सुन रहे थे। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री के ऊपर मुख्यमंत्री की इन बातों का असर था, यह उनके हावभाव में भी परिलक्षित हुआ। पीएम के दौरे में हेमंत सोरेन ने आदिवासियों की उस संस्कृति और परंपरा को प्रगाढ़ किया, जिसमें सहज-सरल आदिवासी अपने मेहमानों का दिल खोल कर सम्मान करते हैं। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के इस दौरे ने निश्चित रूप से आदिवासी दिलों को जोड़ा है। प्रधानमंत्री यही बताने आये थे कि आदिवासी उनके दिल में बसते हैं, वह दिल से आदिवासी समाज का भला करना चाहते हैं। उनके हक और अधिकार की रक्षा करना चाहते हैं। और इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री यह संदेश देने में सफल रहे हैं। इस अवसर पर राष्टÑपति द्रौपदी मुर्मू का संदेश पढ़ा जाना भी आदिवासियों के लिए एक बड़ा संदेश था।

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