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    Home»देश»दिल्ली»पुरानी संसद में मोदी की आखिरी स्पीच, नेहरू, इंदिरा, राजीव की तारीफ की कहा- सदन ने 370 को हटते देखा, कैश फॉर वोट भी हुआ
    दिल्ली

    पुरानी संसद में मोदी की आखिरी स्पीच, नेहरू, इंदिरा, राजीव की तारीफ की कहा- सदन ने 370 को हटते देखा, कैश फॉर वोट भी हुआ

    suraj kumarBy suraj kumarSeptember 18, 2023No Comments4 Mins Read
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    आजाद सिपाही संवाददाता
    नयी दिल्ली। संसद के स्पेशल सेशन के पहले दिन की कार्यवाही 19 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी गयी है। नये संसद भवन में मंगलवार को लोकसभा की कार्यवाही 1:15 बजे और राज्यसभा की कार्यवाही 2:15 बजे शुरू होगी। सोमवार की कार्यवाही संसद के पुराने भवन में हुई। पीएम नरेंद्र मोदी ने पुराने भवन में 50 मिनट की आखिरी स्पीच दी। इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों को याद करते हुए कहा कि ये वो सदन है, जहां पंडित नेहरू का स्ट्रोक आॅफ मिडनाइट की गूंज हम सबको प्रेरित करती है। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का आंदोलन भी इसी सदन ने देखा था। उन्होंने कहा कि सदन ने कैश फॉर वोट और 370 को भी हटते देखा है। वन नेशन वन टैक्स, जीएसटी, वन रैंक वन पेंशन, गरीबों के लिए 10% आरक्षण भी इसी सदन ने दिया।

    मोदी की स्पीच की सात बड़ी बातें
    प्लेटफॉर्म पर गुजारा करनेवाला बच्चा पार्लियामेंट पहुंचा
    पीएम मोदी ने पहली बार संसद में प्रवेश करने की यादों को ताजा करते हुए कहा कि पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में मैंने प्रवेश किया, तो सहज रूप से मैंने संसद भवन की चौखट पर अपना शीश झुका दिया। इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करने के बाद मैंने अंदर पैर रखा। मैं कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन भारत के लोकतंत्र की ताकत है कि रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुजारा करनेवाला एक बच्चा पार्लियामेंट पहुंचता है। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि देश मुझे इतना सम्मान देगा।’​​​​
    परिवार पुराना घर छोड़ कर जाता है, तो कई यादें ले जाता है
    पीएम मोदी ने कहा कि इस सदन से विदाई लेना एक बेहद भावुक पल है, परिवार भी अगर पुराना घर छोड़ कर नये घर जाता है, तो बहुत सारी यादें उसे कुछ पल के लिए झकझोर देती हैं। हम इस सदन को छोड़ कर जा रहे हैं, तो हमारा मन मस्तिष्क भी उन भावनाओं से भरा हुआ है और अनेक यादों से भरा हुआ है। उत्सव-उमंग, खट्टे-मीठे पल, नोक-झोंक इन यादों के साथ जुड़ा है।

    देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों को याद किया
    पंडित नेहरू, शास्त्री से लेकर अटल, मनमोहन सिंह तक कई नाम हैं, जिन्होंने इस सदन का नेतृत्व किया। सदन के माध्यम से देश को दिशा दी है। देश को नये रंग रूप में ढालने के लिए उन्होंने परिश्रम किया है, पुरुषार्थ किया है। आज उन सबका गौरवगान करने का अवसर है। सरदार वल्लभ भाई पटेल, लोहिया, चंद्रशेखर, आडवाणी न जाने अनगिनत नाम, जिन्होंने हमारे इस सदन को समृद्ध करने में, चर्चाओं को समृद्ध करने का काम किया है।

    नेहरू जी के गुणगान में कौन होगा, जो ताली नहीं बजायेगा
    पीएम मोदी ने इस दौरान विपक्ष पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बहुत सी बातें ऐसी थीं, जो सदन में हर किसी की तालियों की हकदार थीं, लेकिन शायद उसमें भी राजनीति आगे आ गयी। नेहरू जी का गुणगान अगर इस सदन में होगा, तो कौन सदस्य होगा जो उस पर ताली नहीं बजायेगा। शास्त्री जी ने 65 के युद्ध में देश के सैनिकों का हौसला इसी सदन से बढ़ाया था। वहीं इंदिरा गांधी ने इसी सदन से बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के आंदोलन का नेतृत्व किया।

    अब तक 7500 से अधिक प्रतिनिधि दोनों सदनों में आ चुके
    मोदी ने कहा, शुरूआत में महिला सदस्यों की संख्या कम थी, धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ी। प्रारंभ से अब तक 7500 से अधिक प्रतिनिधि दोनों सदनों में आ चुके हैं। इस कालखंड में करीब 600 महिला सांसद आयीं। इंद्रजीत गुप्ता 43 साल तक इस सदन के साक्षी रहे। शफीकुर्रहमान 93 साल की उम्र में सदन आ रहे हैं। हमारे यहां संसद भवन के गेट पर लिखा है, जनता के लिए दरवाजे खोलिए और देखिए कि कैसे वो अपने अधिकारों को प्राप्त करते हैं। वक्त के साथ संसद की संरचना भी बदलती गयी। समाज के सभी तबके के लोगों का यहां योगदान रहा है।

    संसद पर आतंकी हमला, हमारी जीवात्मा पर हमला था
    पीएम मोदी ने 2001 में संसद में हुए हमले को भी याद किया। पीएम ने कहा कि यह हमला इमारत पर नहीं, बल्कि हमारी जीवात्मा पर हमला हुआ था। यह देश उस घटना को कभी नहीं भूल सकता। आतंकियों से लड़ते हुए जिन सुरक्षाकर्मियों ने हमारी रक्षा की, उन्हें कभी नहीं भूला जा सकता। आतंकियों से लड़ते-लड़ते, सदस्यों को बचाने के लिए जिन्होंने अपने सीने पर गोलियां झेलीं, आज मैं उनको भी नमन करता हूं।

    संसद भवन में पसीना और परिश्रम मेरे देशवासियों का
    पीएम ने कहाÑ आजादी के बाद इस भवन को संसद भवन के रूप में पहचान मिली। इस इमारत का निर्माण करने का फैसला विदेशी शासकों का था। हम गर्व से कह सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में पसीना और परिश्रम मेरे देशवासियों का लगा था। पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे।

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